महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन के लिए अब तक जारी सियासी खींचतान के बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार एक बार फिर से चर्चा के केंद्र में हैं। सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राज्यसभा में एनसीपी की तारीफ के बाद बुधवार को एनसीपी प्रमुख शरद पवार की प्रधानमंत्री से मुलाकात से चर्चाओं का बाजार गर्म है।सवाल उठ रहा है कि क्या राज्य में शिवसेना, कांग्रेस के साथ सरकार बनाने में जुटे पवार सीधे या परोक्ष रूप से भाजपा के मददगार साबित हो सकते हैं। वैसे भी भाजपा से बहुत दूर जा चुकी शिवसेना भी राज्य में कांग्रेस-एनसीपी के साथ सरकार बनने को ले कर पूरी तरह आश्वस्त नहीं है।
दरअसल शिवसेना के आधिकारिक रूप से भाजपा से अलग होने के बाद पवार ने अपने कदमों से कई बार चौंकने पर मजबूर किया है। संघ सूत्रों का दावा है कि राज्य में भाजपा की अगुवाई में सरकार बन सकती है। अगर इस बीच किसी तरह शिवेसना, एनसीपी और कांग्रेस की सरकार बन भी गई तो ज्यादा देर तक नहीं चल पाएगी।
वैसे भी कॉमन मिनिमम प्रोग्राम, सत्ता में विभिन्न दलों की साझेदारी, बीएमसी, राज्यसभा, विधान परिषद चुनाव के लिए फार्मूले पर सहमति बनने के बावजूद तीनों दल मिल कर अब तक राज्यपाल के समक्ष दावा नहीं कर पाए हैं। इसलिए सवाल उठ रहा है कि जब सभी बिंदुओं पर सहमति बन गई है तब तीनों दल सरकार क्यों नहीं बना रहे?
पहले भी दे चुके हैं परोक्ष साथ
क्यों चर्चा में हैं पवार
- शिवसेना को समर्थन पर कांग्रेस में बनी सहमति के बाद पवार की शिवसेना से बातचीत न होने की दलील।
- राज्यपाल द्वारा दिए गए समय से आठ घंटे पहले सरकार बनाने के लिए और समय की मांग।
- शिवसेना की ऐसी ही मांग को ठुकराए जाने के बाद भी एनसीपी का अतिरिक्त समय मांगना।
- एनसीपी के समय मांगने से ही मिला राष्ट्रपति शासन लागू करने का मौका।
- सत्ता के बंटवारे सहित सभी मुद्दे हल होने के बावजूद सरकार बनाने का दावा न करना।
- शिवसेना सांसद संजय राउत का पवार को सौ जन्मों में न समझ पाने संबंधी बयान।
ये है संभावना
- एनसीपी पिछली बार की तरह फिर से भाजपा की सरकार बनाने में परोक्ष मदद करे।
- यूपीए छोड़ केंद्र और राज्य की सरकार में भाजपा के साथ भागीदारी करे
- कुछ दिनों के लिए शिवसेना, कांग्रेस, एनसीपी की सरकार बनने दे, बाद में सरकार से अलग होने की घोषणा करे।
No comments:
Post a Comment