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Saturday, November 23, 2019

महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ वो पहली बार नहीं है


शुक्रवार की रात कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी की बैठक समाप्त होने के बाद शरद पवार ने कहा था कि हम सभी ने उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार कर लिया है। इसके बाद यह स्पष्ट हो गया था कि महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के गठबंधन वाली सरकार बन रही है। यह भी तय हो गया था कि इसका नेतृत्व उद्धव करेंगे। शनिवार सुबह देशभर के अखबार भी इसी खबर के साथ लोगों के घर पहुंचे


लेकिन राजनीति क्या होती है, यह सुबह आठ बजते ही देश ने जान लिया। एक तरफ मीडिया मुंबई में मातोश्री के बाहर जमा था, तो दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषक यह अंदाजा लगा रहे थे कि गठबंधन में कौन से दल को कौन सा मंत्रालय मिलेगा। तभी महाराष्ट्र के राजभवन से खबर आई कि देवेंद्र फडणवीस राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे हैं और उनके साथ एनसीपी के वरिष्ठ नेता और शरद पवार के भतीजे अजित पवार उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं।

यह खबर जंगल में आग की तरह फैली और उन तमाम राजनीतिक जानकारों की समझ को गलत साबित कर दिया, जो इस पक्ष को पूरी तरह से नजरअंदाज कर चुके थे। ऐसा नहीं है कि महाराष्ट्र की राजनीति में यह कोई पहली घटना है। यदि राज्य के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालेंगे तो आपको पता चलेगा कि मौका परस्ती वहां पहले भी होती रही है।

जिस तरीके से महाराष्ट्र में राजनीतिक मौसम ने अचानक करवट बदली है, उसे राज्य की राजनीति में धक्का तंत्र के नाम से जाना जाता है और शरद पवार को इसमें महारत हासिल है। महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार पर यह पंक्तियां बेहद सटीक बैठती हैं, न काहू से दोस्ती न काहू से बैर। ऐसा इसलिए क्योंकि वो कब किससे मिलेंगे...किससे नहीं, यह कोई नहीं जानता है।

धक्का तंत्र की शुरुआत


इस धक्का तंत्र की शुरुआत 1978 में हुई थी, जब कांग्रेस नेता वसंतदादा पाटिल राज्य के मुख्यमंत्री थे। उस समय 38 वर्ष के पवार ने कांग्रेस के ही कुछ विधायकों के साथ मिलकर पार्टी से विद्रोह कर दिया था और अपना एक अलग गुट बना लिया था। इस गुट का नाम प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट (पुलोदा) रखा गया था। कहा जाता है कि पवार ने उस समय पाटिल को धोखा देकर उनकी सरकार को खतरे में डाल दिया था। उन्होंने कभी इसका खंडन भी नहीं किया।

समय कटता गया और कांग्रेस से अलग रहने के कुछ वक्त बाद पवार दोबारा पार्टी में शामिल हो गए और 1990 में राज्य में सरकार बनाई। हालांकि उस समय कांग्रेस पार्टी के पास महाराष्ट्र विधान सभा में केवल 141 सीटें ही थीं, जो बहुमत से कम थीं। यहां भी उनका धक्का तंत्र काम आया।

उस समय उन्होंने अपने दोस्त बाल ठाकरे की पार्टी शिवसेना से सबसे मजबूत नेता छगन भुजबल को तोड़ा था। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि पवार अपने सबसे अच्छे दोस्त की पार्टी में भी सेंध लगा सकते हैं। न ही किसी ने यह सोचा होगा कि भुजबल जैसे नेता अपने गॉडफादर को धोखा देते हुए पवार के साथ जा सकते हैं। लेकिन ऐसा हुआ और पवार के नाम पर यह दर्ज हुआ। इस कृत्य ने फिर साबित किया कि पवार की न तो किसी से दोस्ती है और न ही किसी से बैर।

इसके बाद 1999 में पवार ने एक बार फिर कांग्रेस को सकते में उस वक्त डाल दिया जब सोनिया गांधी के विदेशी मूल का होने के मुद्दे पर उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी। इस बार पार्टी के बड़े नेता पीए संगमा और तारिक अनवर भी उनके साथ थे। तब उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया था।

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